सिंहासन
सिंहासन चौरासी आसनों में से एक है। इसे 'भैरवासन' भी कहा जाता है। इस आसन की मुखमुद्रा वज्रासन और भद्रासन में भी की जा सकती है और तब वज्रासन या भद्रासन सिंहासन के रूप में ही जाना जाता है।
पद्धति :
दोनों पैरों को घुटनों से मोड़कर पीछे की ओर ले जाइए और फिर उनकी एड़ियों पर बैठ जाइए। एड़ियाँ नितम्ब के दोनों ओर रहनी चाहिए। दोनों घुटने एक-दूसरे से लगभग छह इंच दूर रखिए। दाएँ हाथ के पंजे को दाएँ घुटने पर और बाएँ हाथ के पंजे को बाएँ घुटने पर रखिए। दोनों नथुनों और मुंह से थोड़ी-थोड़ी साँस छोड़ते जाइए और साथ ही जीभ को मुंह से बाहर निकालिए। जीभ निकालने की क्रिया पूरी होने के साथ ही साँस भी पूरी तरह बाहर निकल जानी चाहिए। अब साँस लेना बन्द कर दीजिए। कमर सीधी रखिए । मुख के सारे स्नायुओं को खींचकर आँखें पूरी तरह से इस ढंग से खोलिए कि चेहरा डरावना लगे । सामने देखिए। इस स्थिति में छह से आठ सेकण्ड तक स्थिर रहिए। आरंभ में एक सप्ताह तक यह क्रिया प्रतिदिन दो बार करें। थोड़ा अभ्यास हो जाने के बाद प्रतिदिन चार बार यह क्रिया करें।
लाभ :
(1) स्मरणशक्ति बढ़ाने के लिए यह आसन अत्यन्त उपयोगी माना जाता है।
(2) गले की अथवा आवाज की तकलीफ हो या tonsil सूज गया हो तो यह आसन औषधि का काम करता है।
(3) श्वसनतंत्र और स्वरयंत्र पर यह आसन बड़ा प्रभाव डालता है।
(4) यह आसन सीने और पेट के तमाम रोगों को दूर करता है।
(5) यह आसन गूंगापन मिटाता है और आँख, कान तथा त्वचा को लाभ पहुँचाता है।
(6) इस आसन से चेहरे की सुन्दरता और कान्ति में वृद्धि होती है।
(7) यह आसन करने से वज्रासन के सभी लाभ प्राप्त होते हैं।
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