गर्भासन
जब यह आसन किया जाता है तब व्यक्ति का आकार गर्भ के शिशु के जैसा दिखाई देता है; इसीलिए इस आसन को 'गर्भासन' कहा जाता है।
करने का तरीका :कुक्कुटासन की तरह दोनों हाथ जाँध और पिंडली के बीच डालिए। दोनों हाथों की कुहनियों तक का हिस्सा बाहर खींच लीजिए। धैर्यपूर्वक दाहिने हाथ से दाहिने कान की लोलकी और बाएँ हाथ से बाएँ कान की लोलकी पकड़िए। इस स्थिति में अत्यन्त सावधानीपूर्वक आइए। अन्यथा आप पीछे की ओर लुढ़क जाएँगे। धैर्यपूर्वक निरन्तर अभ्यास करते रहने से पुट्ठों के बल पर आप पूरे शरीर का संतुलन रख सकेंगे। यदि यह आसन करने में कठिनाई लगे तो पद्मासन के बिना भी यह आसन किया जा सकता है। उस प्रकार यह आसन करते समय पैर नीचे की ओर लम्बे रखें। शुरू में 8 या 10 सेकण्ड से शुरू करें और फिर उम्र, शक्ति और लाभ के अनुसार एक मिनट तक यह आसन करें।
लाभ/फायदे :
लाभ/फायदे :
(1) यह आसन करने से पेट की ऐंठन, अफारा, आंतो की सूजन, मलावरोध आदि अनेक रोग दूर हो जाते हैं।
(2) इस आसन से पेट साफ होता है, पेट का वायुविकार दूर होता है और पाचनशक्ति बढ़ती है।
(3) इस आसन से पेट के अवयव, वक्षस्थल तथा हाथ-पैर के जोड़ों को पर्याप्त मात्रा में व्यायाम मिलता है और इससे सम्बन्धित तकलीफें दूर हो जाती है।
(4) इस आसन से स्वाभाविक रूप से वीर्य-रक्षा होती है और चित आत्मा में स्थिर होने लगता है।
(2) इस आसन से पेट साफ होता है, पेट का वायुविकार दूर होता है और पाचनशक्ति बढ़ती है।
(3) इस आसन से पेट के अवयव, वक्षस्थल तथा हाथ-पैर के जोड़ों को पर्याप्त मात्रा में व्यायाम मिलता है और इससे सम्बन्धित तकलीफें दूर हो जाती है।
(4) इस आसन से स्वाभाविक रूप से वीर्य-रक्षा होती है और चित आत्मा में स्थिर होने लगता है।
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